लेखनी कहानी -01-Sep-2022 सौंदर्या का अवतरण का चौथा भाग भाग 5, भाग-6 भाग 7 रक्षा का भारत आना ८- श्रेय

17 -श्रेया के मायके वालों का आना

उधर श्रवन के द्वारा सूचना देने पर श्रवन के साथ ससुर अस्पताल पहुंचते हैं। अपनी बेटी के बारे में बहुत चिंतित थे, अस्पताल पहुंचकर उन्होंने श्रवन की हालत को देखा। श्रवन को देखते ही श्रेया के माता-पिता समझ गए, कि बात तो बहुत ही संकट ग्रस्त लगती है‌। श्रवन अपनी सासू मां से लिपटकर खूब रोया, रोते-रोते उसने श्रेया की हालत के बारे में  सासु मां को बताया- सासु मां भी श्रवन की बात सुनकर फूट फूट कर रो पड़ी। श्रेया के पिताजी भी वहीं बैठे अपनी लाडो के बारे में जानकर फूट- फूट कर रो रहे थे, क्योंकि श्रेया उनकी इकलौती और नाजों से पली प्राणो से प्यारी जिगर का टुकड़ा है।  बेटी का कष्ट तो मां-बाप के लिए पहाड़ के बराबर होता है, बेटी के दुख से मां बाप का कलेजा लहूलुहान हो रहा था। सारा घर रो रहा था। और सभी श्रेया के लिए दुआएं कर रहे थे, रोते-रोते श्रेया की मां ने कहा-कि मुझे श्रेया के पास ले चलो। मां को साथ लेकर श्रवन ने आईसीयू तक पहुंचाया। आईसीयू में अंदर जाने की इजाजत किसी को नहीं थी। वहां केवल श्रवन ही जाता था वह भी निर्धारित समय पर। श्रेया की मां अंदर जाने के लिए जिद करने लगी, तो श्रवन ने कहा- मां जी समय होने पर आप अंदर चले जाना। और श्रेया को देख लेना शायद उसे आपके प्यार की जरूरत है। आपका हाथ उसके सर पर रखते ही शायद वो जी उठे। अभी आप यहीं से श्रेया को देख लीजिए और उसके लिए दुआ कीजिए। कि मेरी श्रेया जल्दी ठीक हो कर घर आ जाए। सासू मां  ने उनके सिर पर हाथ रखा और कहा- कि बेटा तुम चिंता मत करो। भगवान सब अच्छा करेंगे, आशा नहीं छोड़नी चाहिए।

भगवान बड़ा कारसाज है, वह सब ठीक करेगा अगर उसने श्रेया को बच्चे के लिए तरसते हुए देखा है, और यह दिन भी तो भगवान ही दिखाया है,तो वह ऐसा कैसे कर सकता है। कि श्रेया बिना बच्चे का मुंह देखे इस दुनिया से चली जाए। नहीं श्रवन परेशान मत हो, सिया को कुछ नहीं होगा। श्रेया जरूर ठीक होगी, परवरदिगार इतना बेरहम नहीं हो सकता। श्रेया को  इतनी बड़ी खुशी देकर और खुद ही उस खुशी को छीन ले। नहीं ऐसा कदापि नहीं हो सकता। श्रेया अपने बच्चे को गोद में जरूर खिलाएगी। आप भगवान पर भरोसा रखो, वह सब ठीक करेंगे।  श्रेया को मां बनाने के लिए भगवान को धन्यवाद देते हुए, श्रेया को दुआएं दे रही थी कि मेरी बच्ची जल्दी ठीक हो जाए। श्रेया की मां आंखों में अश्रु धारा अविराम बह रही थी। श्रेया के पिता ने भी अपनी बेटी को आईसीयू में बाहर से ही देखा और उसकी हालत देखकर उनके आंसू नहीं रुक रहे थे। पिता का भी बुरा हाल था। बेटियां तो वैसे भी पिता की जिगर का टुकड़ा होती है। अपने सामने अपनी बेटी की ऐसी हालत देखकर कौन सा पिता होगा, जो बेटी की हालत देखकर परेशान न हो उठेगा।  जिसने उसे जन्म दिया, गोद में खिलाया, वह उसकी ऐसी हालत कैसे देख सकता है। मां की तरह श्रेया के पिता का भी बहुत बुरा हाल था। वह रो रो कर अपनी बेटी के लिए भाव विभोर हुए जा रहे थे। उनका मन उद्वेलित हो रहा था, ऐसे लगता था कि यह छाती फट जाएगी। श्रेया....श्रेया.....मेरी बेटी.....मेरा जिगर का टुकड़ा..…..कहकर रोए जा रहे थे। सिर्फ उनके मुंह से एक ही बात निकल रही थी कि भगवान हमारी फूल सी  बेटी को ठीक कर दो। हे! भगवान हमने आपका क्या बिगाड़ा है, जो आपने इतना बड़ा कष्ट हमारी बेटी को दिया। हे भगवान! हमारी बेटी को ठीक कर दो, उसके संकट हर लो प्रभु। यह कहते कहते सभी निरन्तर रोए   चले जा रहे थे। लेकिन भगवान थे कि सुनने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

सभीआपस में एक दूसरे को सांत्वना देते धीरज बंधाते और चुप होने को कहते हैं, लेकिन यह सारी चीजें जस की तस ऐसे ही रहती। श्रवन ने सास मां और ससुर जी से कहा-कि चलिए अब आप लोग थोड़ी देर बैठ जाइए, यहां कब तक खड़े रहेंगे। चार बजे श्रेया से मिलने दिया जाएगा। तब आप दोनों लोग बारी-बारी से अंदर जाकर श्रेया को देख लेना। श्रवन की बात सुनकर सास-ससुर दोनों ही कुर्सी पर आकर बैठ गए। और आपस में विचार विमर्श कर रहे थे, कि आगे क्या होगा कैसे होगा क्या करना है। किसी और डॉक्टर से बात किया जाए,कहीं और सलाह ली जाए। जो  श्रेया के लिए उपयोगी हो, और हमारी बेटी ठीक हो जाए।

तभी घड़ी के घंटे की आवाज आई। घड़ी ने चार बजा दिए थे। माता-पिता का इंतजार खत्म हुआ। चार बजे उन्हें अपनी बेटी से मिलना था। उन्होंने श्रवन से कहा- कि अब हम अपनी बेटी से मिलना चाहते हैं.... तब श्रवन ने बारी-बारी से पहले मां को अंदर भेजा। मां श्रेया की हालत देखकर फूट-फूट कर रो पड़ी अपने बेटी के शरीर पर हाथ फेरते हुए उसे लग रहा था कि जैसे वह अभी उठकर बोल पड़ेगी। परंतु ऐसा नहीं हुआ। मां का मन हो रहा था अपनी बेटी से  जी भर के बातें करे। फिर श्रेया की मां ने पर्स से कुछ पैसे निकालकर अपनी बेटी की बला उतारी। भगवान का नाम लिया बाहर आकर उन्होंने वह उतारे हुए पैसे श्रवन को दिए और कहा- कि जाओ इनको गरीबों में बांट दो और कहो। कि वह मेरी बेटी के लिए दुआ करें।अब अंदर जाने की बारी पिता की थी। अंदर जाकर अपनी बेटी को देख तो उनकी छाती फट गई, रो रो कर उनका बुरा हाल था, अपनी बेटी के सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया, और अपनी बेटी को जल्द ठीक होने की दुआ दी। पिता का मन अपनी बेटी के लिए परेशान था, दुख का भाव उनके चेहरे पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे। अब मिलने का समय आईसीयू में बहुत कम था, तो श्रवन को भी श्रेया से मिलने जाना था। इसलिए पिताजी बाहर आ गए, और फिर थोड़ी देर श्रवन श्रेया से मिलने गया। श्रवन जब भी श्रेया से मिलने जाता,  अपने मन की सारी बातें श्रेया से कह देता। चाहे श्रेया सुने या नहीं लेकिन वह उससे ऐसे बात करता, जैसे वह सब सुन रही हो। उससे बात करके अपना मन हल्का कर लेता था। अब मिलने का समय समाप्त हो चुका था। श्रवन उठा- उसने श्रेया के मस्तक को चूमा, श्रेया को प्यार किया और आंखें पोंछे हुए बाहर निकल आया।   बाहर आकर.........

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9 Comments

Chirag chirag

13-Sep-2022 05:10 PM

Nice post 👍

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Achha likha hai 💐

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Priyanka Rani

12-Sep-2022 04:20 PM

Nice post

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